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किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत की संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या । Kilakat Kanha Ghuturwani Awat Soordas Ke Pad । UP Board 10th Syllabus

"किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत" की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या इस आर्टिकल में की गई है। जो कि सूरदास जी की रचना है। और खास बात यह है कि यह पद्यांश यूपी बोर्ड के 10वीं के हिन्दी के काव्य में "पद" शीर्षक से है। तो अगर आप 10वीं में हो तो आपके लिए ये काम की आर्टिकल है। आपके परीक्षा में आ सकता है। 
ये पद शीर्षक का तीसरा "पद" है। आपको ढूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "पद" के लिए अलग - अलग आर्टिकल लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)

Up Board Class 10th "Kavyakhand" Chapter 1 "Surdas" 


यूपी 10वीं हिन्दी (काव्य) सूरदास के "पद" शीर्षक के और अन्य पदों को पढ़ें -







                   पद

किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिम्ब पकरिबै धावत ॥
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौ, कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥
कनक-भूमि पर कर-पग छाया, यह उपमा इक राजति ।
करि-करि प्रतिपद प्रतिमनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ।।
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति ।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु को दूध पियावति ॥

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "पद" शीर्षक से उद्धृत है , जो कि "सूरसागर" नामक ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता है "सूरदास" जी।

प्रसंग - प्रस्तुत पद में कवि सूरदास जी ने मणियों से युक्त नंद के आँगन में घुटनों के बल चलते हुए बालक श्रीकृष्ण की शोभा का वर्णन किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पद में कवि सूरदास जी श्रीकृष्ण के सौन्दर्य एवं बाल-लीलाओं का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि बालक कृष्ण अब घुटनों के बल चलने लगे हैं। राजा नन्द का आँगन सोने का बना है और मणियों से जटित है। उस आँगन में श्रीकृष्ण घुटनों के बल चलते हैं तो किलकारी भी मारते हैं और कभी अपने प्रतिबिम्ब को देखकर पकड़ने के लिए दौड़ते हैं। जब वे किलकारी मारकर हँसते हैं तो उनके मुख में दो दाँत शोभा देते हैं। यानी बहुत ही सुंदर लगता है। उन दाँतों के प्रतिबिम्ब को भी वे बार - बार पकड़ने का प्रयास करते हैं। उनके हाथ-पैरों की छाया उस सोने के फर्श पर ऐसी प्रतीत होती है, मानो प्रत्येक मणि में उनके बैठने के लिए पृथ्वी ने कमल का आसन सजा दिया है, अथवा प्रत्येक मणि पर उनके कमल जैसे हाथ और पैरों का प्रतिबिम्ब पड़ने से ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर कमल के फूलों का आसन बिछा हुआ हो। श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं को देखकर माता यशोदा जी बहुत आनन्दित होती हैं यानि अपने बेटे द्वारा किए जा रहे खेल को देखकर माता यशोदा गदगद होती हैं। और बाबा नन्द को भी बार-बार वहाँ बुलाती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि इसके बाद माता यशोदा मेरे प्रभु बालक कृष्ण को अपने आँचल से ढककर दूध पिलाने लगती हैं।

काव्यगत सौन्दर्य -

भाषा-सरस मधुर ब्रज।
शैली-मुक्तक।
छन्द– गेय पद।
रस-वात्सल्य।
शब्दशक्ति-‘करि करि प्रति-पद प्रति-मनि बसुधा, कमल बैठकी साजति’ में लक्षणा।
गुण–प्रसाद और माधुर्य

प्रस्तुत पद में श्रीकृष्ण की सहज स्वाभाविक हाव-भावपूर्ण बाल-लीलाओं का सुन्दर और मनोहारी चित्रण हुआ है।

कठिन शब्दों के अर्थ -

मनिमय = मणियों से युक्त
कनक = सोना
पकरिबैं = पकड़ने को
धावत = दौड़ते हैं
निरखि = देखकर
राजत = सुशोभित होती हैं
दतियाँ = छोटे-छोटे दाँत
तिहिं = उनको
अवगाहत = पकड़ते हैं
कर-पग = हाथ और पैर
राजति = शोभित होती है
बसुधा = पृथ्वी
बैठकी = आसन 
साजति = सजाती हैं
अँचरा तर = आँचल के नीचे

Keywords -

निम्न पंक्तियो में रस बताइए किलकत कान्ह घुटुरुवन आवत मनिमय कनक नन्द के आँगन बिम्ब पकरिबे धावत
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