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सखी री, मुरली लीजै चोरि का संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या । Sakhi Re Murali Leejai Chori Soordas Ke Pad | Up Board 10th Hindi (Kavyakhand) Chapter 1

प्रस्तुत आर्टिकल में सूरदास जी के पद 'सखी री, मुरली लीजै चोरि' की संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या किया गया है। और साथ में काव्यगत सौंदर्य और कठिन शब्दों का अर्थ भी दिया गया है ताकि समझने में आसानी हो।
सूरदास का यह पद यूपी बोर्ड के 10वीं में पद नामक शीर्षक में है तो अगर आप 10वीं में हो और इस पद का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या जानने चाहते हो तो सही जगह पर आए हो। आपको दिक्कत न हो और आप आसानी से ढूढ़ सको इसलिए हर एक पद की व्याख्या अलग - अलग की जा रही है।

Up Board Class 10th "Kavyakhand" Chapter 1 "Surdas" 


यूपी 10वीं हिन्दी (काव्य) सूरदास के "पद" शीर्षक के और अन्य पदों को पढ़ें -






               
                               पद

सखी री, मुरली लीजै चोरि।
जिनि गुपाल कीन्हे अपनैं बस, प्रीति सबनि की तोरि।
छिन इक घर-भीतर, निसि-बासर, धरत न कबहूँ छोरि।
कबहूँ कर, कबहूँ अधरनि, कटि कबहूँ खोंसत जोरि।
ना जानौं कछु मेलि मोहिनी, राखे अँग-अँग भोरि।
सूरदास प्रभु कौ मन सजनी, बँध्यौ राग की डोरि।।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "पद" शीर्षक से उद्धृत है , जो कि "सूरसागर" नामक ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता है "सूरदास" जी।

प्रसंग - प्रस्तुत पद में कवि सूरदास जी ने वंशी के प्रति गोपियों की ईर्ष्य - भाव वर्णन किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में सूरदास जी कह रहे हैं कि गोपियां मुरली को अपना सौतन समझने लगी हैं। वो उसे कृष्ण से दूर करने का प्लान बनाते हुए एक गोपी दूसरे गोपी से कहती है कि हे सखी! अब हमें श्रीकृष्ण की मुरली चुरा लेनी चाहिए। क्योंकि इस मुरली ने हमारे कान्हा को आने वश में कर लिया है। जिससे वशीभूत होकर होकर श्रीकृष्ण ने हम सबको भुला दिया है। अर्थात इसी मुरली की वज़ह से अब हमें प्यार नहीं करते।
एक क्षण के लिए, घर के अंदर, बाहर, रात - दिन कोई भी समय हो श्रीकृष्ण मुरली का साथ कभी भी नहीं छोड़ते हैं।कभी हाथों में लिए रखते हैं, कभी होठों से लगाए रखते हैं, कभी कमर में खोंस लेते हैं। अर्थात कृष्ण मुरली को कभी अपने से दूर नहीं होने देते हैं।
गोपियां समझ ही नहीं पा रही हैं कि वंशी ने आखिर कौन से मोहिनी मंत्र चला दिया जिससे श्रीकृष्ण पूर्ण रूप से उसके वश में हो गए हैं, मुरली को अपने साथ - साथ रखते हैं। अर्थात न जाने कौन सा मंत्र मार दिया है जिससे कृष्ण वंशी के वश में हो गए हैं, ये गोपियों के समझ से परे है।
सूरदास जी कहते हैं कि गोपियां कह रही हैं की इस वंशी ने मेरे प्रभु श्रीकृष्ण के मन में अपने प्रति प्रेम जगा दिया है,  मन को प्रेम की डोरी से बांधकर कैद कर लिया है।

काव्यगत सौंदर्य -

प्रेम में प्रिय पात्र के दूसरे प्रिय के प्रति ईर्ष्या होना स्वाभाविक और मनोवैज्ञानिक तथ्य है। इसी तथ्य का बड़ा ही सुन्दर वर्णन उक्त पद में सूरदास जी द्वारा किया गया है।
भाषा - सहज - सरल ब्रजी
शैली - मुक्तक और गीतात्मक
छंद - गेय पद
रस - श्रृंगार 
शब्दशक्ति - 'बँध्यौ राग की डोरि' में लक्षणा
गुण - माधुर्य
अलंकार - 'राग की डोरि' में रूपक तथा सम्पूर्ण पद में अनुप्रास

कठिन शब्दों के अर्थ -

प्रीति - प्रेम
छिन इक -एक क्षण
निसि-बासर - रात - दिन
कर - हाथ
अधरन - होठ
कटि - कमर
खोंसत - लगा लेते हैं
मोहिनी - जादू डालकर
भोरि -भुलावा
राग - प्रेम

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Keywords -

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