रस :- रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनन्द' | काव्य में जब किसी पाठक या श्रोता को मजा (आनन्द) आता है | तो उसे रस कहते हैं | कहने का तात्पर्य यह कि जब किसी काव्य को पढ़ने या सुनने , कहने में जो उमंग शरीर के अन्दर उठती है वह रस कहलाती है | रस को हिन्दी काव्य का प्राण कहते हैं | रस के चार अवयव (अंग) होते हैं | स्थायी भाव विभाव अनुभाव संचारी भाव स्थायी भाव :- स्थायी भाव का अर्थ होता है प्रधान भाव और प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुँचता है |जिन्हें कोई भी विरोधी या अविरोधी दबा नहीं सकता | ये रस के अभिन्न अंग होते हैं | ये मनोविकार वासना या संस्कार के रूप में रहते हैं | ये ग्यारह प्रकार की होती है :- रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, भय, जुगुप्सा (घृणा) , विस्मय (आश्चर्य) , वैराग्य, वात्सल्य और रति (अनुराग) | विभाव :- विभाव उसे कहते हैं जो स्थायी भावों का विभावन करते हैं | इसके दो भाग होते हैं :- 1. आलंबन 2. उद्दीपन आलंबन विभाव -