मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या । Meri Bhaw Badha Harau Doha Bihari Lal
"मेरी भव-बाधा हरौ" की संदर्भ सहित व्याख्या इस आर्टिकल में की गई है। जो कि रससिद्ध कवि बिहारी की रचना है। और खास बात यह है कि यह पद्यांश यूपी बोर्ड के 10वीं के हिन्दी के काव्य में "भक्ति" शीर्षक से है। तो अगर आप 10वीं में हो तो आपके लिए ये काम की आर्टिकल है। आपके परीक्षा में आ सकता है।
ये दोहा शीर्षक का पहला "दोहा" है। आपको ढूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "पद" के लिए अलग - आर्टिकल लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा अवनीश कुमार मिश्रा ने वे ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)
दोहा -
मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ ।
जा तन की झांईं परै, स्यामु हरित-दुति होइ॥
संदर्भ - प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "भक्ति " शीर्षक से उद्धृत है , जोकि रीतिकाल के रससिद्ध कवि बिहारी द्वारा रचित ‘बिहारी सतसई’ नामक ग्रंथ से लिया गया है।
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने राधा जी की वंदना की है।
प्रस्तुत दोहे के कईं भाव हैं तो सभी को लिखा जा रहा है, जिससे समझने में आसानी हो।
व्याख्या -
1. प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि वह चतुर राधिका जी मेरे सांसारिक कष्टों को दूर करें, जिनके पीली आभा वाले (गोरे) शरीर की झाँई यानि (प्रतिबिम्ब) पड़ने से श्याम वर्ण के श्रीकृष्ण हरित वर्ण की द्युति वाले; अर्थात् हरे रंग के हो जाते हैं। अर्थात् राधा के प्रभाव पड़ने से सांवले कृष्ण भी हरे रंग के हो जाते हैं। यहां पर हरे का मतलब खुश रहने से भी किया जा सकता है।
2. प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी कहते हैं कि वह चतुर राधिका जी मेरी सांसारिक बाधाओं को दूर करें, जिनके गौरवर्ण यानी गोरी शरीर की चमक पड़ने से श्रीकृष्ण भी फीकी कान्ति वाले हो जाते हैं। अर्थात् राधा के सामने श्रीकृष्ण भी तुच्छ नज़र आते हैं।
3. प्रस्तुत पंक्ति में कविवर बिहारी जी कहते हैं, कि हे चतुर राधिका जी! आप मेरे सांसारिक कष्टों को दूर करें, जिनके ज्ञानमय (गौर) शरीर की झलकमात्र से मन की श्यामलता (पाप) नष्ट हो जाती है। मतलब कवि कहना चाह रहा है कि हे! राधिका जी आप के प्रभाव से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, तो मेरे भी सारे कष्टों को दूर कर दीजिए।
4. प्रस्तुत पंक्ति में रससिद्ध कविवर बिहारी जी कहते हैं, कि वे चतुर राधिका जी मेरी सांसारिक बाधाओं को दूर करें, जिनके शरीर की झलक पड़ने से भगवान् कृष्ण भी प्रसन्नमुख (हरित-कान्ति) हो जाते हैं। अर्थात जो श्रीकृष्ण सारे जहां के दुःख हरते हैं। तो अगर राधा जी की झलक मात्र से उनका मुख प्रसन्न हो जाता है। तो आप काफ़ी पहुंची हुई आत्मा हो और आप हमारे सारे कष्टों को हर लो।
काव्यगत सौंदर्य -
1. भाषा - ब्रज
2. छंद - दोहा
3. शैली - मुक्तक
4. रस - श्रृंगार और भक्ति
5. गुण - प्रसाद और माधुर्य।
6. अलंकार - हरौ, राधा नागरि’ में अनुप्रास, ‘भव-बाधा’, ‘झाईं तथा ‘स्यामु हरित-दुति’ के अनेक अर्थ होने से श्लेष अलंकार की छटा मनमोहक बन पड़ी है।
प्रस्तुत दोहे में बिहारी जी के चित्रकला का ज्ञान प्रकट हुआ है। क्योंकि उक्त दोहे में कवि ने दर्शाया है कि नील और पीत वर्ण मिलकर हरा रंग हो जाता है।
बिहारी जी ने अपने रंगों के ज्ञान का परिचय निम्नलिखित दोहे में भी दिया है।
अधर धरत हरि कै परत, ओठ डीठि पट जोति।
हरित बाँस की बाँसुरी, इन्द्रधनुष सँग होति
कठिन शब्दों के अर्थ -
भव-बाधा = सांसारिक दु:ख
हरौ = दूर करो
नागरि = चतुर
झांईं परै = प्रतिबिम्ब, झलक पड़ने पर
स्यामु = श्रीकृष्ण, नीला, पाप
हरित-दुति = (1) हरी कान्ति, (2) प्रसन्न, (3) हरण हो गयी है द्युति । जिसकी; अर्थात् फीका, कान्तिहीन
यूपी बोर्ड हिन्दी 'काव्य' के अन्य और अभ्यास -
Nice
जवाब देंहटाएंMeri Bhav Bhav Bajar
जवाब देंहटाएंtanupareedp
जवाब देंहटाएंHrthiifecc
जवाब देंहटाएंYou are mental got it
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