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मैया हौं न चरैहौं गाइ संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या | Maiya Ho Na Charaihon Gay Soordas Ke Pad | Up Board 10th Syllabus

प्रस्तुत आर्टिकल में सूरदास जी के पद 'मैया हौं न चरैहौं गाइ' की संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या किया गया है। और साथ में काव्यगत सौंदर्य और कठिन शब्दों का अर्थ भी दिया गया है ताकि समझने में आसानी हो।
सूरदास का यह पद यूपी बोर्ड के 10वीं में पद नामक शीर्षक में है तो अगर आप 10वीं में हो और इस पद का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या जानने चाहते हो तो सही जगह पर आए हो। आपको दिक्कत न हो और आप आसानी से ढूढ़ सको इसलिए हर एक पद की व्याख्या अलग - अलग की जा रही है।

इस आर्टिकल के लेखक हैं , अवनीश कुमार मिश्रा।

Up Board Class 10th "Kavyakhand" Chapter 1 "Surdas" 

सूरदास जी का जीवन परिचय - Soordas Ji Ka Jivan Parichay | Biography Of Soordas In Hindi 

यूपी 10वीं हिन्दी (काव्य) सूरदास के "पद" शीर्षक के और अन्य पदों को पढ़ें -

चरन कमल बंदौ हरि राइ की संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या । Charan Kamal Bandau Hari Rai Soordas Ke Pad । UP Board 10th Syllabus



                              पद

मैया हौं न चरैहौं गाइ ।
सिगरे ग्वाल घिरावत मोसो, मेरे पाइं पिराइ ॥
जौं न पत्याहि पूछि बलदाउहिं, अपनी सौहं दिवाइ ।
यह सुनि माई जसोदा ग्वालनि, गारी देति रिसाइ ॥
मैं पठवति अपने लरिका कौं, आवै मन बहराइ ।
सूर स्याम मेरौ अति बालक, मारत ताहि रिंगाइ ॥

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "पद" शीर्षक से उद्धृत है , जो कि "सूरसागर" नामक ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता है "सूरदास" जी।

प्रसंग - प्रस्तुत पद में बाल कृष्ण अपनी माता यशोदा से ग्वाल - बालों की शिकायत करते हुए कह रहे हैं कि मैया मैं अब गाय चराने नहीं जाऊंगा।

व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में बाल कृष्ण अपनी माता यशोदा से कह रहे हैं कि मैया अब मैं गायों को चराने नहीं जाऊंगा।
वहां पर सारे ग्वाल मुझसे ही अपनी गायों को घिरवाते हैं अर्थात घेरने के लिए कहते हैं , इधर - उधर दौड़ते - दौड़ते मेरे पांव में दर्द होने लगता है।
कृष्ण आगे अपना दुख अपनी मां से कहते हुए कह रहे हैं कि मैया अगर आपको मुझ पर यकीन नहीं है तो आप बलराम भैया को अपनी कसम खिलाकर पूछ लो।
अपने जिगर के टुकड़े की इन बातों को सुनकर माता यशोदा को ग्वाल - बालों पर गुस्सा आ जाता है , और वे उन्हें गाली देने लगती हैं। और कहती हैं कि मैं अपने बेटे को वन में केवल मन बहलाने के लिए भेजती हूं।
सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा माता कह रही हैं कि वन मेरे बच्चे को सब ग्वाल - बाल मिलकर परेशान करते हैं अर्थात इधर - उधर दौड़ाते हैं।

काव्यगत सौंदर्य -

प्रस्तुत पद में कवि सूरदास ने बड़ा ही सुन्दर वर्णन करते हुए बाल कृष्ण की दुखभरी शिकायत और माता यशोदा की ममतामयी क्रोध को बड़े स्वाभाविक ढंग से चित्रित किया है।
भाषा - सरल और स्वाभाविक ब्रज
शैली - मुक्तक
छंद - गेय पद
रस - वात्सल्य
शब्दशक्ति - अभिधा
गुण - माधुर्य
अलंकार - 'मेरे पाइं पिराइ' में तथा 'सूर - स्याम' में अनुप्रास अलंकार है।

कठिन शब्दों का अर्थ -

हौं - मैं
गाइ - गाय
सिगरे - सम्पूर्ण
पाइं - पांव
पत्याहि - विश्वास
सौहं - कसम
रिसाइ - क्रोध
पठवति - भेजती हूं
रिंगाइ - दौड़ाकर

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