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बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमंकि संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या । Boode The Per Ubare । Sakhi । Kabeer Ke Dohe Class 11 Up Board Solutions

प्रस्तुत पद्यांश "बूड़े थे परि ऊबरे‘" का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या , काव्य सौंदर्य तथा शब्दार्थ इस आर्टिकल में लिखा गया है। जो की कबीरदास जी की रचना है , ये छात्रों के लिए काफी मददगार होने वाला है। खास बात यह है कि अगर आप यूपी बोर्ड के 11वीं में हो तो हिंदी के "काव्य" पाठ 1 में "साखी" शीर्षक से है।
आपको दूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "दोहे" का आर्टिकल अलग - लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)
                             दोहा

बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमंकि।
भेरा देख्या जरजरा, ऊतरि पड़े फरंकि।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में ‘साखी’ शीर्षक से उद्धृत है, जो साखी ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत दोहे में बताया गया है कि गुरु के ज्ञान के बगैर भव सागर को पार करना असंभव है।

व्याख्या - प्रस्तुत दोहे में कविवर कबीरदास जी कह रहे हैं कि मैं (शिष्य ) संसार की अज्ञान रूपी नौका में सवार था और सोच रहा था की इसी के माध्यम से मैं इस जगत (भव ) से पार हो जाऊँगा। लेकिन ये तो मेरा भ्रम था। क्योंकि हम तो जर्जर नाव यानि अज्ञान रूपी नाव में सवार थे। कबीरदास जी कहते हैं कि ये तो सही समय पर गुरु के ज्ञान की एक लहर आयी और हम अज्ञानता रूपी नांव से छिटक कर दूर जा गिरे और देखा की जिस नाव में मैं सवार था वह तो बिलकुल ही टूटी फूटी थी अर्थात जर्जर थी। जिसके सहारे नदी नहीं पार किया जा सकता था कहने का अर्थ यह है कि अज्ञानता रूपी इस नाव से भव सागर को पार करना असम्भव था। प्रस्तुत दोहे में भाव है की गुरु के ज्ञान के बगैर भव सागर में डूबना निश्चित ही है, गुरु द्वारा बताये मार्ग मात्र से ही समस्त जीवों का कल्याण सम्भव है।
प्रस्तुत दोहे को में कबीरदास जी ने बताया है कि अज्ञानतावश हम टूटी - फूटी नाव में बैठ गए हमें ये नहीं पता था कि वो जर्जर है। हम उससे भाव सागर पार करना चाहते थे जोकि अज्ञानता रूपी इस नाव से संभव नहीं था। फिर गुरु के ज्ञान का हिलोरा आया और हम छिटकर नाव से बाहर आ गए तब पता चला कि अगर गुरु हमें ज्ञान रूपी लहर से बाहर न निकालते तो हम डूब गए होते। क्योंकि नाव जर्जरी थी तो उससे सागर में डूब जाने का खतरा था।

कठिन शब्दों के अर्थ -


Up Board Class 11th "Kavyakhand" Chapter 1 "Kabirdas" 

कबीरदास का साहित्यिक जीवन परिचय - Kabirdas Ka Jeevan Parichay | Biography Of Kabirdas In Hindi 

यूपी बोर्ड 11वीं हिन्दी (काव्य) कबीरदास के अन्य और पंक्तियों के हल




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