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UP Board Class 12 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 1 अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध । Up Board Solutions

प्रश्न 1.
बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली ।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते ।।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले ।
प्रात: वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।
संतापों को विपुल बढ़ता देख के दु:खिता हो ।
धीरे बोली स-दुःख उससे श्रीमति राधिका यों ।।
प्यारी प्रात: पवन इतना क्यों मुझे है सताती ।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) घर में दुःखी होकर एक दिन अकेले कौन बैठा था?
(iv) फूलों की सुगंध से युक्त होकर राधा के घर में किसने प्रवेश किया?
(v) राधा ने प्रातःकालीन वायु से दुःखित होकर क्या कहा?

                              उत्तर 

(i) प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘पवन-दूतिका’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है। जो अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित ‘प्रियप्रवास’ से है।

पद्यांश के शीर्षक का नाम- पवन - दूतिका

कवि का नाम - अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या–

श्रीकृष्ण के वियोग में बैठी राधा के लिए प्रस्तुत पद्य में हरिऔध जी लिखते हैं कि प्रात:कालीन सुखद वायु पुष्यों की सुगंध लेकर धीरे से खिड़कियों के रास्ते उस घर में प्रविष्ट हुई, प्रवेश हुई है या घुसी है। जिस घर में राधा बहुत दु:खी होकर अकेली बैठी थीं। वायु संयोग में सुखद लगती थी, वही अब वियोग में दु:ख बढ़ाने वाली सिद्ध हुई. अत: उस वायु के कारण अपनी व्यथा को और बढ़ता देखकर राधा बहुत दु:खित होकर उससे बोली कि हे प्यारी प्रभातकालीन वायु! (सुबह की हवा) तू मुझे इतना क्यों सता रही है? अर्थात् तू मुझे इतना क्यों परेशान कर रही हो। क्या तू भी मेरे भाग्य की कठोरता से प्रभावित होकर दूषित हो गयी है अर्थात् समय या भाग्य तो मेरे विपरीत है ही, पर क्या तू भी उससे प्रभावित होकर मेरा दु:ख बढ़ाने पर तुली है, जब कि सामान्यत: तू लोगों को सुख देने वाली मानी जाती है?’ मतलब निम्न पंक्ति में राधा हवा को कहती हैं कि वैसे मेरे श्रीकृष्ण मेरे पास नहीं है तो वियोगन बनी घूम रही हूं उधर तुम भी मुझपर जुल्म ढाने पर तुली हो। जबकि तुम सबकी पीड़ा हरती आई हो।

(iii) घर में दुःखी होकर एक दिन अकेले राधा बैठी थी।

(iv) फूलों की सुगंध से युक्त होकर राधा के घर प्रात:कालीन सुखद वायु ने प्रवेश किया।

(v) राधा ने प्रात:कालीन वायु से दुःखित होकर कहा कि हे प्रभातकालीन वायु! तू मुझे क्यों सताती है? क्या तू भी मेरे भाग्य की कठोरता से प्रभावित होकर दूषित हो गई है। सामान्यतः तू ऐसी नहीं रहती है।

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