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चिंता तौ हरि नाँव की का संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या । Sakhi । Kabeer Ke Dohe Class 11 Up Board Solutions

प्रस्तुत पद्यांश "चिंता तौ हरि नांव की" का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या , काव्य सौंदर्य तथा शब्दार्थ इस आर्टिकल में लिखा गया है। जो की कबीरदास जी की रचना है , ये छात्रों के लिए काफी मददगार होने वाला है। खास बात यह है कि अगर आप यूपी बोर्ड के 11वीं में हो तो हिंदी के "काव्य" पाठ 1 में "साखी" शीर्षक से है।
आपको दूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "दोहे" का आर्टिकल अलग - लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)

                                  दोहा 


चिंता तौ हरि नाँव की, और न चिंता दास।
जे कुछ चितवै राम बिन, सोइ काल की पास॥

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में ‘साखी’ शीर्षक से उद्धृत है, जो साखी ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत दोहे में कवि हरि चिंतन करने को कह रहा है जिससे बन्धन और मृत्यु में फँसने से बचा जा सकता है।

व्याख्या - प्रस्तुत दोहे में कबीरदास जी का कहना है कि राम भक्त साधक को यदि चिंता है तो वह केवल मालिक की है, ईश्वर की है अर्थात् राम की है। यहां राम से आशय निर्गुण पूर्ण परम् ब्रह्म से है। वह ब्रह्म जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का रचयिता है और ब्रह्माण्ड का स्वामी है। मालिक की चिंता कैसी ? अर्थात जो सबका मालिक हो, सभी का पालनहार हो उसकी चिंता कैसी? मालिक की चिंता से आशय है भक्ति से। कबीरदास जी कहते हैं यह मानव जीवन अनेकों योनियों के भोगने के उपरान्त मिला है। मानव ही सृष्टि का एक ऐसा प्राणी है जिसके पास समझ है। यानी मनुष्य योनि सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ है। श्रेष्ठता का आशय यह है की केवल मनुष्य ही ईश्वर की महिमा को समझने और उसकी भक्ति करने में समर्थ हैं, अन्य जीव नहीं।
प्रस्तुत दोहे का अर्थ इस प्रकार भी समझ सकते हो, दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि मैं तो केवल हरि (भगवान) नाम का चिन्तन करता हूँ और किसी भी वस्तु का चिन्तन नहीं करता। जो लोग राम को छोड़कर और कुछ और चिन्तन करते हैं, वे बन्धन और मृत्यु में फँसते हैं। यानि कबीरदास जी कहना चाह रहे हैं कि मोह - माया में न पड़कर अपने ईश्वर का चिंतन करना चाहिए नहीं तो किसी और का चिंतन करनी से मन भटकता है जिससे बन्धन और मृत्यु में फंसते देर नहीं लगती।
कबीरदास जी के इस दोहे का आशय आप इस प्रकार भी समझ सकते हो, जिसमें कवि ने बताया है कि साधक को केवल राम की भक्ति की चिंता है अर्थात किसी भी प्रकार की सांसारिक भौतिक वस्तुएं और स्वार्थों की आवश्यकता नहीं है। कबीर जी कहते हैं कि कोई साधक जो हरि के सिवाय किसी भी वस्तु और विषय की चिंता करता है वह काल का भागी बनता है। अर्थात् काल के मुंह में समा जाता है।


कठिन शब्दों के अर्थ -

चिंता तौ - चिंता जिस विषय की है
हरि नाँव की - चिंता तो केवल हरी नाम की है
और न चिंता दास - हरी भक्त को और कोई चिंता नहीं है
जे कछु - जो कुछ भी
राम बिन - ईश्वर के बगैर, ईश्वर के अतरिक्त
सोइ काल की पास - वही काल का भागी होता है

यूपी बोर्ड 11वीं हिन्दी (काव्य) कबीरदास के अन्य और पंक्तियों के हल


Keywords -

Chinta To Hari Nav Ki
Chinta To Hari Nav Ki  Explain
चिंता तो हरि नाम की
चिंता तौ हरि नाँव की, और न चिंता दास जे कुछ चितवै राम बिन, सोइ काल की पास
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कबीर साहेब की साखी
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