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रामहि प्रेम समेत लखि, सखिन्ह समीप बोलाइ संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या । तुलसीदास जी के दोहे । Up Board Solutions Class 10 Hindi

प्रस्तुत पद्यांश "रामहि प्रेम समेत लखि, सखिन्ह समीप बोलाइ" का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या , काव्यगत सौंदर्य , का शब्दार्थ इस आर्टिकल में लिखा गया है। जो की गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना है , ये छात्रों के लिए काफी मददगार होने वाला है। खास बात यह है कि अगर आप यूपी बोर्ड के 10वीं में हो तो हिंदी के "काव्य" पाठ 2 में "धनुष - भंग" शीर्षक से है।
आपको दूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "दोहे" का आर्टिकल अलग - लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)

                           दोहा

रामहि प्रेम समेत लखि, सखिन्ह समीप बोलाइ।
सीता मातु सनेह बस, बचन कहइ बिलखाइ ।

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "धनुष - भंग" शीर्षक से उद्धृत है , जो कि "श्रीरामचरितमानस" नामक ग्रंथ के "अयोध्याकांड" से लिया गया है। जिसके रचयिता "गोस्वामी तुलसीदास" जी हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पद्य में तुलसीदास जी कहते हैं सीताजी की माता का श्रीरामचन्द्र जी के प्रति अत्यधिक स्नेह व्यक्त किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पद्य में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मंच पर अवतरित हुए श्रीरामचन्द्र जी को अत्यधिक वात्सल्य भाव के साथ देखकर सीताजी की माता ने अपनी सभी सखियों-सहेलियों को अपने पास बुला लिया और प्रेमवश विलाप करते हुए ये वचन कहने लगी।

काव्यगत सौन्दर्य-

1. प्रस्तुत दोहे में सीताजी की माता का राम के प्रति वात्सल्य भाव का वर्णन हुआ है।
2. भाषा-अवधी
3. शैली–प्रबन्ध।
4. रसवात्सल्य।
5. छन्द-दोहा।
6. अलंकार– अनुप्रास।
7. गुण–प्रसाद।।

कठिन शब्दों का अर्थ -

लखि = देवकर
खस = वशीभूत होकर
बिलखाइ = विलाप करते हुए

यूपी बोर्ड हिन्दी 'काव्य' के अन्य और अभ्यास -




Keywords -

धनुष भंग की व्याख्या / Class 10
सीता स्वयंवर धनुष भंग
धनुष भंग की व्याख्या कक्षा 10
तुलसीदास की व्याख्या
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