सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नृपन्ह केरि आसा निसि नासी संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या । धनुष भंग की व्याख्या कक्षा 10 । Tulsidas Chapter 2

प्रस्तुत पद्यांश "नृपन्ह केरि आसा निसि नासी" का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या , काव्यगत सौंदर्य , शब्दार्थ इस आर्टिकल में लिखा गया है। जो की गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना है , ये छात्रों के लिए काफी मददगार होने वाला है। खास बात यह है कि अगर आप यूपी बोर्ड के 10वीं में हो तो हिंदी के "काव्य" पाठ 2 में "धनुष - भंग" शीर्षक से है।
आपको दूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "चौपाई" का आर्टिकल अलग - लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)

                            चौपाई 

नृपन्ह केरि आसा निसि नासी । बचन नखत अवलीन प्रकासी ॥
मानी महिप कुमुद सकुचाने। कपटी भूप उलूक लुकाने ॥
भए बिसोक कोक मुनि देवा। बरसहिं सुमन जनावहिं सेवा ॥
गुर पद बंदि सहित अनुरागा। राम मुनिन्ह सन आयसु मागा॥
सहजहिं चले सकल जग स्वामी । मत्त मंजु बर कुंजर गामी ॥
चलत राम सब पुर नर नारी । पुलक पूरि तन भए सुखारी ॥
बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे । जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ॥
तौं सिवधनु मृनाल की नाईं। तोरहुँ रामु गनेस गोसाईं ॥

संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "धनुष - भंग" शीर्षक से उद्धृत है , जो कि "श्रीरामचरितमानस" नामक ग्रंथ के "बालकाण्ड" से लिया गया है। जिसके रचयिता "गोस्वामी तुलसीदास" जी हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश में तुलसीदास जी ने सभा में उपस्थित कपटी राजाओं की स्थिति, राम की विनम्रता तथा सारे नगरवासियों की मनोवृत्ति का काफ़ी सुंदर वर्णन किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत चौपाइयों में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीरामचन्द्र जी के मंच पर चढ़ते ही सभा में उपस्थित अन्य राजाओं की आशारूपी रात्रि नष्ट हो गयी और उनके वचनरूपी तारों के समूह का चमकना बन्द हो गया, अर्थात् वे मौन हो गये। कहने का अर्थ ये है कि रामचंद्र जी के आगे सब के सब फीके हो गए हैं। अभिमानी राजारूपी कुमुद संकुचित हो गए हैं और कपटी राजारूपी उल्लू छिप गए हैं। मुनि और देवतारूपी चकवे प्रसन्न हो गए हैं। उन्होंने फूलों की वर्षा कर उनकी सेवा - अनुग्रह प्रगट करने लगे हैं। इसके बाद, श्रीराम चंद्र जी ने, अपने गुरु विश्वामित्र के चरण को स्नेह से स्पर्श किया, इसके बाद वहाँ के सभी ऋषियों से आशीर्वाद मांगा।
गोस्वामी तुलसीदास जी आगे कहते हैं कि सारे जगत के मालिक श्रीरामचन्द्र जी सब धनुष भंग के लिए चलते हैं तो सुन्दर, मतवाले और श्रेष्ठ हाथी की चाल से चले जो कि उनकी स्वाभाविक चाल थी। श्रीरामचन्द्र जी के चलते ही सभा में उपस्थित नगर के सभी स्त्री-पुरुष प्रसन्न हो गये और उनके शरीर रोमांच से पुलकित हो गये। यानि उनमें खुशी की लहर दौड़ गई। सभा में उपस्थित समस्त स्त्री-पुरुषों ने अपने पूर्वजों की वन्दना की और अपने पुण्य कर्मों का स्मरण करते हुए कहा कि हे गणेश जी! यदि हमारे द्वारा किये हुए पुण्य कर्मों का किंचित् भी फल मिलता हो तो श्रीरामचन्द्र जी शंकर के इस धनुष को कमल की नाल (दण्ड) के समान तोड़ डालें। तुलसीदास जी के इन चौपाइयों में आशय यह है कि सभा में उपस्थित कुटिल और घमंडी राजाओं के अतिरिक्त सभी सज्जन व्यक्ति यही चाहते थे कि तीनों लोकों के स्वामी श्रीराम इस धनुष को तोड़ दें।

काव्यगत सौन्दर्य–

1. प्रस्तुत पद्यांश में तुलसीदास जी ने इसका स्पष्ट वर्णन किया गया है कि नगर के समस्त नर-नारी चाहते थे कि सीता को वर रूप में राम ही प्राप्त हों।
2. भाषा-अवधी।
3. शैली–प्रबन्ध और वर्णनात्मक।
4. रस-भक्ति।
5. छन्द–दोहा।
6. अलंकार-रूपक और अनुप्रास अलंकार का मनमोहक प्रयोग।
7. गुण–प्रसाद।
8. शब्दशक्ति-अभिधा और व्यंजना।

कठिन शब्दों के अर्थ -

निसि = रात्रि
नखते = नक्षत्र, तारे 
अवली = पंक्ति, समूह
मानी = अभिमानी 
लुकाने = छिपना
कोक = चकवा, कोयल
आयसु – आज्ञा
बर = श्रेष्ठ
कुंजर = हाथी
पुलक = रोमांच
पितर = पूर्वज
मृनाल = कमल की नाल

यूपी बोर्ड हिन्दी 'काव्य' के अन्य और अभ्यास -




Keywords -

धनुष भंग की व्याख्या / Class 10
सीता स्वयंवर धनुष भंग
धनुष भंग की व्याख्या कक्षा 10
तुलसीदास की व्याख्या
Up Board Hindi Solution
Up Board Hindi Solution Class 10
तुलसीदास Class 10
धनुष भंग की व्याख्या Class 10

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या । Meri Bhaw Badha Harau Doha Bihari Lal

"मेरी भव-बाधा हरौ" की संदर्भ सहित व्याख्या इस आर्टिकल में की गई है। जो कि रससिद्ध कवि बिहारी की रचना है। और खास बात यह है कि यह पद्यांश यूपी बोर्ड के 10वीं के हिन्दी के काव्य में "भक्ति" शीर्षक से है। तो अगर आप 10वीं में हो तो आपके लिए ये काम की आर्टिकल है। आपके परीक्षा में आ सकता है।  ये दोहा शीर्षक का पहला "दोहा" है। आपको ढूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "पद" के लिए अलग - आर्टिकल लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा अवनीश कुमार मिश्रा ने वे ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं) दोहा - मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ । जा तन की झांईं परै, स्यामु हरित-दुति होइ॥ संदर्भ - प्रस्तुत दोहा  हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "भक्ति " शीर्षक से उद्धृत है , जोकि रीतिकाल के रससिद्ध कवि बिहारी द्वारा रचित ‘बिहारी सतसई’ नामक ग्रंथ से लिया गया है। प्रसंग - प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने राधा जी की वंदना की है। प्रस्तुत दोहे के कईं भाव हैं तो सभी को लिखा जा रहा है, जिससे समझने में आसानी हो। व्याख्या -   1

ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या । Udhav Mohi Braj Bisrat Nahi Soordas Ke Pad । Up Board Hindi 10th Syllabus

"ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं" की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या इस आर्टिकल में की गई है। जो कि सूरदास जी की रचना है। और खास बात यह है कि यह पद्यांश यूपी बोर्ड के 10वीं के हिन्दी के काव्य में "पद" शीर्षक से है। तो अगर आप 10वीं में हो तो आपके लिए ये काम की आर्टिकल है। आपके परीक्षा में आ सकता है।  ये पद शीर्षक का सातवां "पद" है। आपको ढूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "पद" के लिए अलग - अलग आर्टिकल लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं) Up Board Class 10th "Kavyakhand" Chapter 1 "Surdas"   सूरदास जी का जीवन परिचय - Soordas Ji Ka Jivan Parichay | Biography Of Soordas In Hindi  यूपी 10वीं हिन्दी (काव्य) सूरदास के "पद" शीर्षक के और अन्य पदों को पढ़ें - चरन कमल बंदौ हरि राइ की संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या । Charan Kamal Bandau Hari Rai Soordas Ke Pad । UP Board 10th Syllabus  अबिगत - गति कछु कहत न आवै का संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या । A

बलिहारी गुर आपणैं का संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या । Sakhi । Kabeer Ke Dohe Class 11 Up Board Solutions

प्रस्तुत पद्यांश "बलिहारी गुर आपणैं ‘" का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या , काव्य सौंदर्य तथा शब्दार्थ इस आर्टिकल में लिखा गया है। जो की कबीरदास जी की रचना है , ये छात्रों के लिए काफी मददगार होने वाला है। खास बात यह है कि अगर आप यूपी बोर्ड के 11वीं में हो तो हिंदी के "काव्य" पाठ 1 में "साखी" शीर्षक से है। आपको दूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "दोहे" का आर्टिकल अलग - लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)                               दोहा बलिहारी गुर आपणैं, द्यौहाड़ी कै बार। जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥ सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में ‘साखी’ शीर्षक से उद्धृत है, जो साखी ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं। प्रसंग - कबीरदास ने प्रस्तुत दोहे में गुरु के प्रति अपनी भावना व्यक्त किया है और महिमा का वर्णन करते हुए उनपर न्यौछावर हो जाने की बात की है।  व्याख्या - प्रस्तुत दोहे में कबीरदास जी गु