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मोर-मुकुट की चंद्रिकनु की संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या । Mor Mukut Ki Chandrikanu Doha Bihari Lal । Up Board 10th Syllabus Solutions

"मोर-मुकुट की चंद्रिकनु" की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या इस आर्टिकल में की गई है। जो कि रससिद्ध कवि बिहारी की रचना है। और खास बात यह है कि यह पद्यांश यूपी बोर्ड के 10वीं के हिन्दी के काव्य में "भक्ति" शीर्षक से है। तो अगर आप 10वीं में हो तो आपके लिए ये काम की आर्टिकल है। आपके परीक्षा में आ सकता है। 
ये दोहा शीर्षक का पहला "दोहा" है। आपको ढूढ़ने में दिक्कत ना हो इसलिए हर एक "दोहे" के लिए अलग - अलग आर्टिकल लिखा गया है। (यह आर्टिकल आप Gupshup News वेबसाइट पर पढ़ रहे हो जिसे लिखा है, अवनीश कुमार मिश्रा ने, ये ही इस वेबसाइट के ऑनर हैं)

दोहा -

मोर-मुकुट की चंद्रिकनु, यौं राजत नंदनंद ।।
मनु ससि सेखर की अकस, किय सेखर सत चंद ॥

संदर्भ - प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में "भक्ति " शीर्षक से उद्धृत है , जोकि रीतिकाल के रससिद्ध कवि बिहारी द्वारा रचित ‘बिहारी सतसई’ नामक ग्रंथ से लिया गया है।

प्रसंग - प्रस्तुत दोहे में कविवर बिहारी जी ने श्रीकृष्ण के सिर पर लगे मोर-मुकुट की चन्द्रिकाओं का सुन्दर चित्रण किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत दोहे में कविवर बिहारी जी कह रहे हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण के सिर पर मोर पंखों का मुकुट शोभा दे रहा है। उन मोर पंखों के बीच में बनी सुनहरी चन्द्राकार चन्द्रिकाएँ देखकर ऐसा लगता है, जैसे मानो भगवान् शंकर से प्रतिस्पर्धा करने के लिए उन्होंने सैकड़ों चन्द्रमा सिर पर धारण कर लिये हों। कहने का अर्थ यह है कि कृष्ण के सिर पर जो मुकुट है उसमें चंद्रमा के आकार की चंद्रिकाएं हैं, जिसे देखकर लगता है कि श्रीकृष्ण ने ऐसा भगवान शंकर से मुकाबला करने के लिए किया है। क्योंकि भगवान शंकर के सिर पर चंद्रमा विराजमान है।

काव्यगत सौन्दर्य-

1. भाषा - ब्रज
2. छंद - दोहा
3. शैली - मुक्तक
4. रस - श्रृंगार
5. गुण - माधुर्य
6. अलंकार—‘मोर-मुकुट तथा ‘ससि सेखर’ में अनुप्रास एवं ‘मनु ससि सेखर की अकस’, ‘किय सेखर सत चंद’ में उत्प्रेक्षा तथा ‘ससि सेखर’ और ‘सेखर’ में सभंग श्लेष।

प्रस्तुत दोहे में श्रीकृष्ण के अनुपम सौंदर्य का मोहक वर्णन हुआ है।

कठिन शब्दों के अर्थ -

चंद्रिकनु = चन्द्रिकाएँ
राजत = शोभायमान होना
ससि सेखर = चन्द्रमा जिनके सिर पर है अर्थात् भगवान् शंकर 
अकस = प्रतिद्वन्द्वितावश

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