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राजा तनी जाई ना बहरिया गाने का सप्रसंग, व्याख्या । Raja Jai Na Bahariya Song Meaning । Rakesh Mishra Song

राजा तनी जाई ना बहरिया गाना भोजपुरी का पॉपुलर सोंग है जिसने राकेश मिश्रा को पहले से ज्यादा पॉपुलर कर दिया है। ये गाना अबतक कईं करोड़ व्यूज बटोर चुका है। हर शादी - विवाह एवम् अन्य प्रोग्राम में ये गाना खूब बजाया जा रहा है। अवनीश कुमार मिश्रा ने इस गाने का अर्थ आप सब को समझाने की कोशिश की है। जिसे दिल पर ना लेकर बस मनोरंजन करें।


राजा तनी जाई ना बहरिया गाने का संदर्भ, प्रसंग, व्याख्या और काव्य - सौंदर्य (Raja Jai Na Bahariya Song Meaning)

1. कोरा में सट के उलट के पलट के

देले बाड़s देहिया तुर हो


ऐ हटs ना !


बिजली के तार में भतार अझूरईलs

मने मन कईलs मजबूर हो

लाहे लाहे छुई जनि हमारा पs मुई

राजा दरद से गिरे लागी लोर

राजा तनी जाई ना बहरिया


टूटता बदन पोरे पोर

राजा तनी जाई ना बहरिया

छोड़ दिहि होई गईले भोर

राजा तनी जाई ना बहरिया

हटी ना महाराज !

रात भर सुतबे नs कईनी हs !!

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियां भोजपुरी के एल्बम ये राजा जाई ना बहरिया से लिया गया है। जिसके रचयिता हैं, अश्लील राज शुभकांत कुमार और सोनू सरगम। Music दिया है एडीआर आंनद ने और गाया है, राकेश मिश्रा ने। वीडियो में तृषाकर मधु और राकेश ठरकपन करते हुए नज़र आ रहे हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में नायिका अपने पति से रात में हुई उठापटक से होने वाली समस्याओं को बता रही हैं। और कह रही हैं कि अब सुबह हो गया है। अब तो रहने दो। यहां पर नायिका अपने आपको सती - सावित्री भी घोषित करना चाहती हैं।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्ति में नायिका मधु अपने पति राकेश मिश्रा से कह रही हैं। कि रात को गोदी में उठा के चिपका लिया और इधर - इधर पलट के यानि चित - पट करके देह को तोड़कर रख दिया है। अर्थात् बड़ा भयंकर हमला किया रात को राकेश ने मधु के ऊपर। जो कि अभी तक परेशान कर रहा है।
इसी परेशानी से आजिज आकर नायिका नायक को हटने की बात कर रही है। अर्थात् अपने शरीर से दूर हटने की बात कर रही हैं। पता नहीं मन नहीं करता या मन भरा हुआ है यार के साथ। ये तो पूरा पढ़ने पर पता चलेगा।
अगली पंक्ति में नायिका खुद को बिजली का तार कहते हुए कह रही है कि बिजली के तार में भतार यानि राकेश मिश्रा फंस गए और मेरा मन ना होने के बावजूद मजबूर किया। इस पंक्ति में नायिका के जोश में कमी जान पड़ती है। और राकेश मिश्रा को जबरदस्ती करने के जुर्म में केस भी कर सकती है। मगर कुछ भी नहीं करेगी। क्योंकि वो उनका भतार है ना। वैसे लड़कियों का मन होता है फ़िर भी वे भाव मारती हैं तो इसे दिल पर लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। निराश ना हों यारों आगे के लाइन में शायद कुछ जोश आ जाए।
हां आगे की लाइन में जोश आ गया क्योंकि इस लाइन में साफ़ - साफ़ नज़र आ रहा है कि नायिका का मन है, क्योंकि वो कह रही है कि धीरे - धीरे छुओ। मुझपे ज्यादा मरो ना। यानि कि उन्हें रोमांस करने से दिक्कत नहीं है बस धीरे - धीरे करने की सलाह दे रही है। शायद दर्द हो रहा हो। जो आपके दिमाग़ है वही समझ लो कोई दिक्कत नही है।
और हां अगली लाइन में ये साफ़ हो गया कि नायिका को दर्द से आंसू गिरने का डर है। वैसे कम उम्र वालों को दर्द होता है और आंसू भी गिरते हैं। पर नायिका तो खिलाड़ी लग रही हैं। अगर अच्छे से विचार करें तो उक्त पंक्ति में नायिका खुद को सती - सावित्री साबित करने की पुरजोर कोशिश कर रही है।
फिर अगली ही पंक्ति में पिया को बाहर जाने की बात करते हुए कह रही है कि मेरा बदन हर एक जगह से दुख रहा है। कहने का मतलब रात हुई कालाकांडी से शरीर का पुर्जा - पुर्जा हिल गया है। जिससे पूरा शरीर दर्द कर रहा है। अरे! अब मोहतरमा को कौन समझाए कि अपने पुर्जे में मोबी ऑयल डलवा लें तो दर्द थोड़ा कम हो जाए। खैर! इनकी मर्ज़ी मन करे जैसा करें।
ख़ैर! लड़कियां कहां मानने वाली फ़िर नायक को बाहर चले जाने की जिद करती हैं और कहती हैं कि सुबह हो गई है। अब तो चले जाओ। शायद नायिका को डर सता रहा है कि कोई जान ना जाए या शरीर से... खैर! छोड़ो। 
बार - बार कहने पर भी नायक जब नहीं मानता है तो नायिका हाथ जोड़ कहती है, अरे! महाराज, हमारे पिया, राजा, भतार अब तो जाओ। रात भर सोने नहीं दिया। अब तो थोड़ा सा सो लेने दो। कहने के मतलब रात भर गुल्ली - डंडा खेले हो अब तो बस करो।  

2. हमर नया नया गवना

गवना ! गवना !

नया तकिया बिछवना

बिछावना ! बिछवना !


नया चोली के खोली

चोली के खोली !

तूs बनवलs खेलवना

खेलवना ! खेलवना !

जा नास कs दिहलs !


हमर नया नया गवना

नया नया गवना !

नया तकिया बिछवना

तकिया बिछवना !

नया चोली के खोली

चोली के खोली !

तूs बनवलs खेलवना

बनवलs खेलवना !


नया नोहर जानी बनिये के चोर

राजा देलs कमर बड़ा तोड़

राजा तनी जाई ना बहरिया

टूटता बदन पोरे पोर


ए राजा तनी जाई ना बहरिया

छोड़ दिहि होई गईले भोर

राजा तनी जाई ना बहरिया

अब छोड़िये दी !


संदर्भ - पूर्ववत

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में नायिका अपने गवना में मिले नए - नए सामान एवम् कपड़ों के साथ हुए दुर्गति को बता रही है। कि उनके पिया ने कितना अन्याय किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्ति में नायिका अपनी बिरह का वर्णन करते हुए कह रही हैं। कि हमारा नया - नया गवना हुआ है और हमारा तकिया और बिछौना सब कुछ नया - नया है। इस बात से ये जान पड़ता है, की नायिका पहले से खेली - खेलाई है वरना गवने के पहले रात ही सब कुछ पुराना हो जाता है। समझ रहे हो ना, नहीं समझ रहे हो तो अभी पाठ सोलह पढ़ो..|
ख़ैर! आगे बढ़ते हैं, तो यहां तो और भारी - भरकम समस्या है। यहां नायिका अपने साथ हुए चोली - कांड को जगजाहिर करने में जुटी हुई हैं। कहती हैं, कि हमारे राजा जी ने नए चोली को खोलकर हाथ में ले लिया और खिलौना बनाकर खेला। सब नाश नर दिया, मने की बेकार कर दिया। वैसे चोली खोले जाने पर नायिका को इतना गरमाना ना चाहिए कुछ और खोले जाने पर गरमाना चाहिए...।  वैसे सच! मे ऐसा करना नहीं चाहिए राकेश मिश्रा को मगर ये उनकी ड्यूटी थी और ऑन ड्यूटी किसी को टोंक नहीं सकते।
अगले पंक्ति में नायिका कहती है, मैं नई - नई आई हूं और आप चोर बनके मेरा सब कुछ चुरा लिया। और ऐसे - ऐसे उठापटक किया है कि कमर को तोड़ डाला है। यार अब मैं कंफ्यूज हो चुका हूं कि ऐसा क्या चुरा लिया कि कमर टूट गया। आप सबको पता हो तो ज़रूर बताना। वैसे अब मोहतरमा को कौन बताए कि गवना करके भजन गाने के लिए लाए हैं?
इतनी नौटंकी के बाद फ़िर वही भसूड़ी कि राजा तनी बाहर जाओ ना । मेरा बदन दुख रहा है। अब इन्हें कौन समझाए कि राजा अंदर रहेंगे तो बॉडी की मसाज़ करके दर्द कम कर देंगे। ख़ैर! उनकी सोच। जब बुद्धि ही भ्रष्ट है।
लड़की जात अपनी बात मनवाकर ही दम लेती हैं, तो फ़िर वही बात की राजा जी तनिक सा बाहर जाओ ना। सुबह हो गई है। प्लीज़ अब छोड़ दीजिए ना। नायिका के निम्न लक्षणों को देखकर ये लगता है कि वो राजा को घर से बाहर करके अपने यरवा से बतियाना चाहती है।

3. खाई गईलs ओठललिया

ललिया ! ललिया !

तुर देलs कनबलिया

बलिया ! बलिया !

काट लेलs बरियारी

लेलs बरियारी !

हमार सेव नियन गलिया

गलिया ! गलिया !


खाई गईलs ओठललिया

गईलs ओठललिया !

तुर देलs कनबलिया

देलs कनबलिया !

काट लेलs बरियारी

लेलs बरियारी !

हमार सेव नियन गलिया

सेव नियन गलिया !


मारs जनि जोर देह बाटे कमजोर

हमार फाटे लागी नस थोड़े थोड़

राजा तनी जाई ना बहरिया

टूटता बदन पोरे पोर

ऐ राजा तनी जाई ना बहरिया


छोड़ दिहि होई गईले भोरे

ऐ राजा तनी जाई ना बहरिया

आ खा जईबs का हमरा के ?

जा ना !!

संदर्भ - पूर्ववत

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में नायिका अपने पति के हवसरूपी आतंक का वर्णन कर रही हैं, जिसे कवि ने अच्छे से लिखने का प्रयास किया है।

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने नायिका के विरह का वर्णन करते हुए लिखा है कि नायिका (मधु), नायक राकेश से कह रही है कि रात को धक्कम - धुक्की में मेरे होठ की लाली ही खा गए और कान की बाली को तोड़ डाला है। 
नायिका की उक्त बातों को सुनकर हमको लग रहा हैं की नायक बहुत हवसी, जोशीला है। ससुरे में इतना गर्माहट है कि होठ काटा, लाली खा गया और इतना उलट - पलट किया कि बेचारी का 15 रुपए का रोल - गोल्ड वाली कान की बाली ही टूट गई। जो ठरकी चौराहे के पास स्थित दुकान से चुराया था।
फ़िर नायिका आपबीती सुनाते हुए कहती है कि मेरे राजा ने जबरदस्ती करके मेरा सेव जैसा गाल काट लिया है।
अब इन्हें कौन बताए कि सेव खाने के लिए होता ना कि देखने के लिए।
अब अगली पंक्ति के बारे में जानने से पहले अपना पिछवाड़ा मजबूत कर लीजिए क्योंकि यहां भोजपुरी की असली लिरिक्स है जो आपको वो करने पर मजबूर कर देगी। तो देर किस बात की बताएं आपको कि इस लाइन में नायिका अपने पिया से कह रही है कि मेरा शरीर कमजोर है जोर - जोर से यानि तेज स्पीड में गाड़ी ना चलाइए हमारे वहां की नस थोड़ा - थोड़ा फटने लगेगी।
मतलब अब हम यहां कुछ भी नहीं कह सकते क्योंकि मुझे पता है कि आप पाठ सोलह पढ़कर तभी इसे पढ़ने आए हो।
और नायिका की फ़िर वही बकचोदी कि राजा जी बाहर जाओ ना। पूरा शरीर टूट रहा है। सुबह हो गया है। अब तो चले जाओ, क्या हमें खा ही डालोगे? चले जाओ ना।
इस लाइन में नायिका, नायक के हवस की पोल खोल रही हैं। सच! में नायक ठरकी लग रहा है। 

4. दीपक कईलs बरियारी

यारी ! यारी !

नासी देलs नया साड़ी

साड़ी ! साड़ी !

होई ओठवा पs दगिया

ओठवा पs दगिया !

तs ननदी ताना मारी

ताना मारी !


ऐ ! दीपक कईलs बरियारी

कईलs बरियारी !

नास देलs नया साड़ी

देलs नया साड़ी !

होई ओठवा पs दगिया

ओठवा पs दगिया !

तs ननदी ताना मारी

ननदी ताना मारी !


मदन मनीष ADR आ राकेश से भी

भईल नीरज मन थोर

ऐ राजा तनी जाई ना बहरिया

टूटता बदन पोरे पोर

ऐ राजा तनी जाई ना बहरिया

छोड़ दिहि होई गईले भोरे

ऐ राजा तनी जाई ना बहरिया


चल जाई !

कल फेर आयी !!

रउवे नु हs !

काटी चाहे साटी !!


संदर्भ - पूर्ववत

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में नायिका अपने साथ हुए जबरदस्ती की व्यथा बता रही हैं। 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में नायिका अपने साथ हुए जबरदस्ती को उजागर करते हुए कह रही हैं। की दीपक ने मेरे साथ जबरदस्ती कर दिया है। या किया था सही से समझ में नहीं आ रहा हमें क्योंकि वीडियो में तो जबरदस्ती करते हुए राकेश मिश्रा नज़र आ रहे हैं। हो सकता है पहले कोई कहानी बता रही हों लेकिन नहीं यहां पर 100 - 200 रुपए में आने वाले वीडियो डॉयरेक्टर ने ग़लती कर दी है। ख़ैर! भोजपुरी में सब जायज़ है।
लेकिन बात यही तक रहती तो ठीक रहता लेकिन वे दीपक पर साड़ी बेकार करने का आरोप लगा रही हैं। जबकि वीडियो में साफ़ - साफ़ दिख रहा है कि राकेश ने उनकी साड़ी बर्बाद कर रहे हैं। फ़िलहाल इसमें टेंशन लेने वाली बात नहीं है क्योंकि भोजपुरी में लड़की वाले गाने भी लड़के गाते हैं, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए यहां पर क्योंकि ये गाना भी लड़की का है मगर लड़का गा रहा है। ये भोजपुरी है यहां सब जायज़ है।
मगर बात करें साड़ी बर्बाद करने की तो हमें नहीं लगता है कि ये इतनी उम्र की है और हऊ वाला खेल खेलने से इनकी साड़ी बर्बाद हो जाएगी। असम्भव अलंकार नज़र आ रहा है इसमें तो।
यहीं तक भसूड़ी खत्म नहीं हुई आगे की हाल सुनो जनाब क्योंकि अब तो चुम्मा लेते वक्त का जो दाग़ है उसके बारे में सोच कर परेशान हो रही है बेचारी। यानि कि नायक ने बड़े अच्छे तरीके से होठ की कटाई - चुसाई की है। जिससे मधु के होठ पर कटने का निशान हो गया है और उसे डर है कि कहीं ननद ने देख लिया तो तना मारेगी। अर्थात उनके खेला का पोल खुल जाएगा। मगर उन्हें डरना नहीं चाहिए क्योंकि गवना में आई हैं। 
लेकिन फ़िर अगर चुम्मा की बात करें तो नायिका जो चुम्मा पर इतना ड्रामा नहीं करना चाहिए क्योंकि जिस भोजपुरी में 10 - 20 रुपए में होठलाली चूसने को मिल जाता है। वहां चुम्मा के लिए इतना डर। हमें कुछ बर्दाश्त नहीं हो रहा है। 
लेकिन अगली लाइन में हमें बिल्कुल बर्दाश्त ही नहीं हो रहा है, क्योंकि इसमें नायिका अपनी हवस को बुझाने में मदन, मनीष, एडीआर, राकेश और नीरज सभी को नाकाम बता रही हैं। कहती हैं, कि इन सबसे उनका मन थोड़ा ही भर पाया। मतलब उक्त पंक्ति में इन सबको नामर्द साबित करना चाह रही हैं। जबकि पहले की सारी पंक्तियों में वे राकेश मिश्रा पर जबरी करने और रात - भर परेशान करने का आरोप लगा रही थी। और अब कह रही है कि इतने लोग मिलकर भी उनका मन नहीं भर सके।
मैंने तो पहले ही बोल दिया था कि ये खेली - खेलाई हुई चीज है। जो ख़ुद को सती - सावित्री साबित करने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। और हां हमें लगता है कि मदन, मनीष, एडीआर और नीरज उनके यार हैं, हो पहले इनका मन नहीं भरा सके हैं। पर सच्चाई क्या है, मुझे नहीं पता क्योंकि गाना भोजपुरिया गीतकारों की सोच बहुत आगे होती है। ये लोग लहंगे में हीटर और मीटर लगाने जैसी टेक्नोलॉजी तक सोच लेते हैं।
वैसे बात करें तो सारी बकचोदी के बाद नायिका फ़िर से अपना रण्डी - रोना शुरू करते हुए कहती हैं, कि राजा बाहर जाई ना। मेरा पूरा शरीर टूट गया है यानि सारा पुर्जा दर्द कर रहा है। और ऊपर से सुबह भी हो गया है तो राजा जी अब तो बाहर चले जाइए। लेकिन ससुरा नायक कहां मानने वाला है बस उखमज्ज किए जा रहा है। 
नायक के बारे में जानकर ये भी लग रहा है कि बेचारा कभी लड़की नहीं देखा है। जिंदगी भर का भूखा है।
सारी मिन्नतों के बाद भी जब नायक नहीं जाता है तो नायिका कहती है। कि अभी चले जाइए, कल फिर फ़िर चले आना। ये माल आपका ही है चाहे काट डालो या चिपका कर रखो। मतलब चाहे प्रेम कर लो या हवस ही बुझा लो ये माल तो आपका ही है। यहां पर नायिका नायक को। आश्वासन दे रही है।

काव्य सौंदर्य - 

अलंकार - ठरकपन
रस - हवस और श्रृंगार
भाषा - भोजपुरी

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