राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
जन्म सन् -1886 ई मृत्यु सन् -1964
पिता का नाम - रामचरण गुप्त
माता का नाम - काशीबाई
जन्म स्थान - उत्तर प्रदेश जिला झांसी (चिरगांव)
पिता का नाम - रामचरण गुप्त
माता का नाम - काशीबाई
जन्म स्थान - उत्तर प्रदेश जिला झांसी (चिरगांव)
मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन - परिचय विस्तार से पढ़ें -
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के जिला झाँसी के चिरगांव नामक गांव में संवत् 1943वि० (सन् 1886ई०) को हुआ था | इनके पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्त था | रामचरण जी स्वयं एक अच्छे कवि थे | इसलिए अपने पिता का पूर्ण प्रभाव मैथिलीशरण गुप्त जी पर पड़ा | इन्होंने बचपन में ही छप्पय की रचना कर अपने पिता को चकित कर दिया | इनकी माता का नाम 'काशीबाई' था |
बचपन में गुप्त जी को अंग्रेजी पढ़ने के लिए झाँसी भेजा गया
लेकिन वहाँ इनका मन न लग सका ; इसलिए इनकी शिक्षा - दीक्षा का प्रबन्ध घर पर ही किया गया , घर पर ही रहते हुए गुप्त जी ने अंग्रेजी , हिन्दी , संस्कृत का गहन अध्ययन किया |
लेकिन वहाँ इनका मन न लग सका ; इसलिए इनकी शिक्षा - दीक्षा का प्रबन्ध घर पर ही किया गया , घर पर ही रहते हुए गुप्त जी ने अंग्रेजी , हिन्दी , संस्कृत का गहन अध्ययन किया |
पहले इनकी रचनाऐं 'वैश्योपकारक' नामक पत्र में छपती थी , जो कि कलकत्ता से प्रकाशित होती थी |
गुप्त जी द्विवेदी जी को अपना गुरु मानते थे ,और द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने के बाद इनके अन्दर की प्रतिभा जग उठी और इनकी रचनाऐं 'सरस्वती' में भी छपने लगी | आचार्य महावीर प्रसाद से भी इन्हें बहुत प्रेरणा मिली |सन् 1912ई में 'भारत - भारती' के प्रकाशन के बाद इन्हें ख्याति मिलनी प्रारम्भ हुई |
गुप्त जी द्विवेदी जी को अपना गुरु मानते थे ,और द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने के बाद इनके अन्दर की प्रतिभा जग उठी और इनकी रचनाऐं 'सरस्वती' में भी छपने लगी | आचार्य महावीर प्रसाद से भी इन्हें बहुत प्रेरणा मिली |सन् 1912ई में 'भारत - भारती' के प्रकाशन के बाद इन्हें ख्याति मिलनी प्रारम्भ हुई |
ये असहयोग आन्दोलन में भी भाग लेते रहे , जिससे जेल भी जाना पड़ा |
मैथिलीशरण गुप्त जी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी से बहुत ही प्रभावित थे |
गुप्त जी बहुत ही विनम्र और खुशमिजाद एवं सरल स्वभाव के थे |
ये राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत हुये | और भारत सरकार द्वारा साहित्य - सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित हुये |
मैथिलीशरण गुप्त जी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी से बहुत ही प्रभावित थे |
गुप्त जी बहुत ही विनम्र और खुशमिजाद एवं सरल स्वभाव के थे |
ये राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत हुये | और भारत सरकार द्वारा साहित्य - सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित हुये |
मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति उत्पन्न की और देश के लिए आन्दोलनों में भाग लेते रहें |
इन्हें 'साकेत' महाकाव्य के लिए मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला |
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी बहुत ही प्रसिद्ध कवि थे , इन्होंने राष्ट्र को अपनी कविताओं से लेगों को राष्ट्र प्रेम का पाठ पढ़ाया |
मैथिलीशरण गुप्त जी की साहित्यिक उपलब्धियों के कारण ही इलाहाबाद एवं आगरा विश्वविद्यालय द्वारा इनको डी० लिट्० की मानद उपाधि से विभूषित किया गया |
गुप्त जी अपने अन्तिम समय तक निरन्तर साहित्य - सृजन करते रहे , और संवत् 2021वि० (सन् 1964ई०) को यह महान साहित्यकार दुनिया को अलविदा कह गया |
मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाओं में राष्ट्रप्रेम का कुछ अलग ही मजा था |
गुप्त जी आधुनिक युग के श्रेष्ठ कवियों में से एक थे |
गुप्त जी की रचनाऐं खड़ी बोली में हैं जो सरल शुद्ध एवं परिष्कृत है | इनकी रचनाओं में स्थान - स्थान पर जो मुहावरें एवं लोकोक्तियाँ प्रयोग की गई है इसी से इनके काव्य - रचनाऐं जीवंत हो उठती हैं |
गुप्त जी आज हमारे एवं आपके बीच में नहीं हैं लेकिन साहित्य एवं राष्ट्रीय प्रेम के लिए ये हमारे बीच सदा याद आते रहेंगें |
सच्चे अर्थों में कहें तो मैथिलीशरण गुप्त जी सच्चे राष्ट्र कवि थे |
गुप्त जी की कुछ रचनाऐं निम्न हैं -
जयद्रथ वध,भारत-भारती, पंचवटी,यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, अंजलि और अर्ध्य, अर्जन और विसर्जन, किसान, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध,रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरिन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिडिम्बा, हिन्दू मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, साकेत ,नहुष , अजित , काबा और कर्बला , कुणाल गीत आदि |
इन्हें 'साकेत' महाकाव्य के लिए मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला |
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी बहुत ही प्रसिद्ध कवि थे , इन्होंने राष्ट्र को अपनी कविताओं से लेगों को राष्ट्र प्रेम का पाठ पढ़ाया |
मैथिलीशरण गुप्त जी की साहित्यिक उपलब्धियों के कारण ही इलाहाबाद एवं आगरा विश्वविद्यालय द्वारा इनको डी० लिट्० की मानद उपाधि से विभूषित किया गया |
गुप्त जी अपने अन्तिम समय तक निरन्तर साहित्य - सृजन करते रहे , और संवत् 2021वि० (सन् 1964ई०) को यह महान साहित्यकार दुनिया को अलविदा कह गया |
मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाओं में राष्ट्रप्रेम का कुछ अलग ही मजा था |
गुप्त जी आधुनिक युग के श्रेष्ठ कवियों में से एक थे |
गुप्त जी की रचनाऐं खड़ी बोली में हैं जो सरल शुद्ध एवं परिष्कृत है | इनकी रचनाओं में स्थान - स्थान पर जो मुहावरें एवं लोकोक्तियाँ प्रयोग की गई है इसी से इनके काव्य - रचनाऐं जीवंत हो उठती हैं |
गुप्त जी आज हमारे एवं आपके बीच में नहीं हैं लेकिन साहित्य एवं राष्ट्रीय प्रेम के लिए ये हमारे बीच सदा याद आते रहेंगें |
सच्चे अर्थों में कहें तो मैथिलीशरण गुप्त जी सच्चे राष्ट्र कवि थे |
गुप्त जी की कुछ रचनाऐं निम्न हैं -
जयद्रथ वध,भारत-भारती, पंचवटी,यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, अंजलि और अर्ध्य, अर्जन और विसर्जन, किसान, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध,रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरिन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिडिम्बा, हिन्दू मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, साकेत ,नहुष , अजित , काबा और कर्बला , कुणाल गीत आदि |
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