भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन - परिचय - हिन्दी में | Bhartendu Harishchandra Ka Jeevan Parichay In Hindi | Bhartendu Harishchandra Biography In Hindi
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
जन्म सन् -1850 मृत्यु सन् -1885
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Photo Source : Google |
माता का नाम - पार्वती देवी
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का जीवन - परिचय विस्तार से पढ़ें -
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को संवत् 1907वि० (1850ई०) को काशी के एक सम्पन्न वैश्य परिवार में हुआ था |
इनका घराना काशी के धनाढ्य वर्ग में रहा |
ये सेठ अमीचन्द की वंश - परम्परा में आते हैं जो कि काशी के इतिहास प्रसिद्ध थे |
इनके पिता का नाम गोपाल चन्द्र 'गिरधर दास' जो कि साहित्यप्रेमी और भक्त थे , इनते पिता ने भी 'नहुष - वध' नाटक और कुछ कविताएँ लिखी थी |
इनके माता का नाम पार्वती देवी था , हरिश्चन्द जी जब बालक (लगभग 5वर्ष के) थे , तभी इनके माता का साया इनके सिर से उठ गया | जब कुछ बड़े हुए (10वर्ष) तो पिताजी भी दुनिया छोड़कर चले गये |
भारतेन्दु जी का दाखिला क्वींस कॉलेज में कराया गया , लेकिन पैतृक सम्पत्तियों की देखभाल एवं घर गृहस्थ के उलझन ने इन्हें शिक्षा से दूर कर दिया |
हरिश्चन्द जी के अन्दर पढ़ने की चाहत और विलक्षण प्रतिभा थी , जिससे उन्होंने स्कूल छूट जाने पर घर पर ही स्वाध्याय द्वारा पढ़ाई की जिससे इन्हें संस्कृत , हिन्दी , बंगला आदि में उचित ज्ञान प्राप्त हुआ |
ये ग्यारह वर्ष की आयु से ही कविता लिखने लगे थे |
पन्द्रह वर्ष की उम्र में जगन्नाथ यात्रा के दौरान इनकी भेंट बंगला साहित्य की नयी प्रवृति से हुई |
यात्रा के बाद इन्होंने कविता एवं नाटक लिखें और 'कवि - वचन - सुधा' पत्रिका का प्रकाशन किया |
'हरिश्चन्द्र मैगजीन' एवं 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका'का प्रकाशन भी भारतेन्दु जी ने किया |
हरिश्चन्द्र जी को हिन्दी से बड़ा प्रेम था | सरल , हँसमुख , स्वाभिमानी एवं उदार भाव के कारण इनकी बहुत अच्छे लोगों से मित्रता थी |
ये अपने उदार भाव के कारण हिन्दी संस्थानों , कवियों , लेखकों आदि लोगों पर धन व्यय करते थे , काफी धनी परिवार से होने के कारण इन्हें धन का अभाव कभी भी महसूस ही नहीं हुआ | कुल मिलाकर भारतेन्दु जी परोपकारी स्वभाव के थे |
लेखक , कवि , समालोचक , आदि के साथ - साथ ,समाज के लिए ये एक राष्ट्र - नेता के रूप में थे |
इन्हीं विचारों के बदौलत हरिश्चन्द्र जी को देश के विद्वानों द्वारा 'भारतेन्दु' का विशेषण सन् 1880ई० में विभूषित किया गया |
भारतेन्दु जी ने अपने अन्तिम समय तक स्वयं साहित्य की सेवा की और दूसरों को भी प्रेरित किया | हिन्दी को विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में स्थान दिलाने का भरसक प्रयत्न किया |
सच कहें तो जैसी लोकप्रियता भारतेन्दु जी को मिली और वो भी कम उम्र में , वैसी लोकप्रियता किसी भी कवि को नहीं मिली |
अन्तिम समय में ये क्षय रोग से पीड़ित होकर , मात्र 34 वर्ष 4 माह की उम्र में माघ , कृष्णपक्ष षष्ठी , संवत् 1941वि० (सन् 1885ई०) में दुनिया छोड़कर हमेशा के लिए चले गये |
इनका घराना काशी के धनाढ्य वर्ग में रहा |
ये सेठ अमीचन्द की वंश - परम्परा में आते हैं जो कि काशी के इतिहास प्रसिद्ध थे |
इनके पिता का नाम गोपाल चन्द्र 'गिरधर दास' जो कि साहित्यप्रेमी और भक्त थे , इनते पिता ने भी 'नहुष - वध' नाटक और कुछ कविताएँ लिखी थी |
इनके माता का नाम पार्वती देवी था , हरिश्चन्द जी जब बालक (लगभग 5वर्ष के) थे , तभी इनके माता का साया इनके सिर से उठ गया | जब कुछ बड़े हुए (10वर्ष) तो पिताजी भी दुनिया छोड़कर चले गये |
भारतेन्दु जी का दाखिला क्वींस कॉलेज में कराया गया , लेकिन पैतृक सम्पत्तियों की देखभाल एवं घर गृहस्थ के उलझन ने इन्हें शिक्षा से दूर कर दिया |
हरिश्चन्द जी के अन्दर पढ़ने की चाहत और विलक्षण प्रतिभा थी , जिससे उन्होंने स्कूल छूट जाने पर घर पर ही स्वाध्याय द्वारा पढ़ाई की जिससे इन्हें संस्कृत , हिन्दी , बंगला आदि में उचित ज्ञान प्राप्त हुआ |
ये ग्यारह वर्ष की आयु से ही कविता लिखने लगे थे |
पन्द्रह वर्ष की उम्र में जगन्नाथ यात्रा के दौरान इनकी भेंट बंगला साहित्य की नयी प्रवृति से हुई |
यात्रा के बाद इन्होंने कविता एवं नाटक लिखें और 'कवि - वचन - सुधा' पत्रिका का प्रकाशन किया |
'हरिश्चन्द्र मैगजीन' एवं 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका'का प्रकाशन भी भारतेन्दु जी ने किया |
हरिश्चन्द्र जी को हिन्दी से बड़ा प्रेम था | सरल , हँसमुख , स्वाभिमानी एवं उदार भाव के कारण इनकी बहुत अच्छे लोगों से मित्रता थी |
ये अपने उदार भाव के कारण हिन्दी संस्थानों , कवियों , लेखकों आदि लोगों पर धन व्यय करते थे , काफी धनी परिवार से होने के कारण इन्हें धन का अभाव कभी भी महसूस ही नहीं हुआ | कुल मिलाकर भारतेन्दु जी परोपकारी स्वभाव के थे |
लेखक , कवि , समालोचक , आदि के साथ - साथ ,समाज के लिए ये एक राष्ट्र - नेता के रूप में थे |
इन्हीं विचारों के बदौलत हरिश्चन्द्र जी को देश के विद्वानों द्वारा 'भारतेन्दु' का विशेषण सन् 1880ई० में विभूषित किया गया |
भारतेन्दु जी ने अपने अन्तिम समय तक स्वयं साहित्य की सेवा की और दूसरों को भी प्रेरित किया | हिन्दी को विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में स्थान दिलाने का भरसक प्रयत्न किया |
सच कहें तो जैसी लोकप्रियता भारतेन्दु जी को मिली और वो भी कम उम्र में , वैसी लोकप्रियता किसी भी कवि को नहीं मिली |
अन्तिम समय में ये क्षय रोग से पीड़ित होकर , मात्र 34 वर्ष 4 माह की उम्र में माघ , कृष्णपक्ष षष्ठी , संवत् 1941वि० (सन् 1885ई०) में दुनिया छोड़कर हमेशा के लिए चले गये |
भारतेन्दु = भारत + इन्दु = भारत + चन्द्रमा , नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि ये कितने प्रभावशाली एवं प्रतिभाशाली थे |
इनकी कितनी कद्र थी , समाज में |
इन्होंने हिन्दी का प्रचार - प्रसार एवं साहित्य के सभी विधाओं में लिखने का प्रयास किया और काफी हद तक सफल भी रहे |
साहित्य जगत का यह चन्द्रमा साहित्य प्रेमियों के दिल में हमेशा चमचमाता रहेगा |
इनकी कितनी कद्र थी , समाज में |
इन्होंने हिन्दी का प्रचार - प्रसार एवं साहित्य के सभी विधाओं में लिखने का प्रयास किया और काफी हद तक सफल भी रहे |
साहित्य जगत का यह चन्द्रमा साहित्य प्रेमियों के दिल में हमेशा चमचमाता रहेगा |
इनकी कुछ रचनाऐं निम्न हैं -
काव्य - कृतियाँ -
काव्य - कृतियाँ -
'प्रेम - सरोवर' , 'प्रेमाश्रु' , 'प्रेम - माधुरी' , 'प्रेम - तरंग' , 'प्रेम - मालिका' , 'वीरत्व' , 'विजयिनी' , 'तन्मय - लीला' , 'बन्दर - सभा' , 'कृष्ण - चरित' , 'विजय - पताका' आदि |
नाटक -
'अंधेर - नगरी' , 'नीलदेवी' , 'सत्य हरिश्चन्द्र' आदि ।
'अंधेर - नगरी' , 'नीलदेवी' , 'सत्य हरिश्चन्द्र' आदि ।
उपन्यास -
'पूर्ण प्रकाश' और 'चन्द्रप्रभा'
'पूर्ण प्रकाश' और 'चन्द्रप्रभा'
यात्रा वृतांत -
'लखनऊ की यात्रा' , 'सरयू पार की यात्रा' आदि |
जीवनी -
'सूरदास' , 'महात्मा मुहम्मद' आदि |
'सूरदास' , 'महात्मा मुहम्मद' आदि |
पुरातत्व और इतिहास सम्बन्धी -
'कश्मीर - कुसुम', 'रामायण का समय' आदि |
'कश्मीर - कुसुम', 'रामायण का समय' आदि |
Bhartendu Harishchandra's Biography In Hindi आपने पढ़ा। अगर कोई कहीं कुछ छूट गया हो तो आप कमेंट करें , हम तुरंत अपडेट करेंगे।
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