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नज़रे करम मुझ पर इतना न कर,
की तेरी मोहब्बत के लिए बागी हो जाऊं,
मुझे इतना न पिला इश्क़-ए-जाम की,
मैं इश्क़ के जहर का आदि हो जाऊं।

शायर - अज्ञात

Nazaren Karam Mujh Per Itna Na Kar
Ki Teri Mohabbat Ke Liye Bagi Ho Jaun
Mujhe Itna Na Pula Ishk - E - Zaam Ki
Main Ishq Ke Zehar Ka Aadi Ho Jaun

तू हज़ार बार भी रूठे तो मना लूँगा तुझे
मगर देख मोहब्बत में शामिल कोई दूसरा ना हो

शायर - अज्ञात

Tu Hazar Baar Bhi Ruthe To Mana Lunga Tujhe
Magar Dekh Mohabbat Me Shamil Koi Dusra Na Ho

कुछ मजबूरियां हैं वरना,
कहाँ रहा जाता है तेरे बिन।

शायर - अज्ञात

Kuchh Mazbooriyan Hain Warna
Kahan Raha Jata Hai Tere Bin

तुम पूछ लेना सुबह से, न यकीन हो तो शाम से
ये दिल धड़कता है तेरे ही नाम से।

शायर - अज्ञात

Tum Poochh Lena Subah Se, Na Yaqeen Ho To Sham Se
Ye Dil Dhadkata Hai Tere Hi Nam Se

बेवफा लोग बढ़ रहे हैं धीरे धीरे,
इक शहर अब इनका भी होना चाहिए…

शायर - अज्ञात

Bewafa Log Badh Rahe Hain Dheere Dheere
Ik Shaher Ab Inka Bhi Hona Chahiye...

बहुत थे मेरे भी इस दुनिया मेँ अपने
फिर हुआ इश्क और हम लावारिस हो गए

शायर - अज्ञात

Bahut The Mere Bhi Is Duniya Me Apne
Fir Ishq Hua Aur Hum Lawaris Ho Gaye

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